कई बार चलते-चलते
यूँ ही पलट के देखता हूँ
एक धुंधली सी तस्वीर
अपने पलक पे देखता हूँ
ढक लिया जिसने जेहन को,
उसे फलक पे देखता हूँ
सुन्दर इतना हो सकता कैसे कोई
एक ललक से देखता हूँ
रहता इंतज़ार तबका जब तुम्हारे
एक झलक को देखता हूँ
कई बार चलते-चलते
यूँ ही पलट के देखता हूँ
Thursday, July 1, 2010
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