Friday, December 17, 2010

सोच के दीप जला कर देखो

दूर गगन में जा कर देखो
सोच के दीप जला कर देखो

चन्दा तो उतना ही हँसी है
जितने पँख लगा कर देखो

उडती पतंगें मौजों सी ही
गीत सुहाने गा कर देखो

जीवन आनी जानी शय है
कोई तो अलख जगा कर देखो

रुत बदले , मिजाज भी बदले
वक्त से ताल मिला कर देखो

मरघट सी सूनी ख़ामोशी
क़ैद से बाहर कर देखो

बच्चे बूढ़े जवाँ हो जाते
आस का फूल खिला कर देखो

घर भर को रौशन कर देता
एक दिया ही जला कर देखो

No comments:

Post a Comment