Thursday, July 1, 2010

लेकिन क्या मै सोचता रह जाऊँगा

रात में सूरज को तरसता हूँ,
दिन में धूप से तड़पता हूँ
आखिर क्या होगा मेरा.....?
मै हूँ कहाँ इस यात्रा में....?
सोचता हूँ तो पाया


मुझे
ना मंजिल का पता है
ना पहचान है,
ना रास्ते में हूँ
ना सराय में,
मंजिल भी सोचती होगी
ये भी
अजीब नादान है!

खजूर की छाँव देख भी
ललचा जाता हूँ,
जबकि जानता हूँ मै
थोड़ा आगे ही तो
पीपल की घनी छाँव भी है!

राह छोड़
पगडंडियों
पर भटक जाता हूँ,
जबकि मै
देख चुका पहले भी
कि
इनका भी तो
ये राह ही
पड़ाव है!

ऐसा लगता है
जैसे नींद में हूँ,
अभी मै 
सो रहा हूँ,
आँख भी खुलती है कई बार
खुली भी है,
अँधेरा देख
पता ही नहीं लगता कि
भोर है या रात
और मै फिर सो जाता हूँ!

मै सोचता हूँ
इस बार
वो मुझे बतायेगा नहीं
जगायेगा!
सही राह पर नहीं चलाएगा
बल्कि
अपनी गोदी में उठाएगा,
झूठी हँसी नहीं
सच्चे आँसू रुलाएगा.....

लेकिन क्या मै सोचता रह जाऊँगा....?

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